Poems

ईंटों का मकान

एक सुबह आंगन में धूप सेकते हुएएक तितली को उड़ते देखादेख उसे जाते डाल डालसे पात पातमैंने सोचाक्या तितली का भी घर होता होगा?होते मेरे भी पंख अगरक्या मुझे सुहाते ईंटों के घर ?ख्याल उड़ने का तो हैमुझे भी लुभातापर गिरने के डर से मन कुछ सहम सा जाताकभी खुली आंखों से सपने देखती हूँउनमें […]